Sunday, 16 February 2014

" चंद मुट्ठीभर लोग हैं कब्जाए दुनिया "

लिए पैरहन तन की भूख उदर की 

माप दी कदमों ने ये राहे किधर की .

इरादों में बंधा हुआ कर्म का लेखा 


मुस्कुरा लेते है देख धोखा जिधर भी 

मुसलसल वक्त हुजुर ने तोहफा दिया 


चाँद रोटी सा सूरज अंगार रखकर ही 

किसे कहा जाये स्वर्णिम अतीत यारों 


बीता ठेका शहंशाहों से गुजरकर ही

जैसे चाहा मरोड़ा जैसे सोचा तोडा था 


कानून भी, फैसला भी हूँ मैं हुनर भी

चंद मुट्ठीभर लोग हैं कब्जाए दुनिया


उठालो इरादे गर वो चलेंगे भापकर ही

उठालो सख्ती से मुट्ठी वोट जब मांगे 


पूछो हिसाब गली में आता देखकर जी .-- विजयलक्ष्मी 

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