Tuesday, 18 February 2014

" गिरेगा आँख से मोती तेरा मेरी पलको पर संवर "



कैफियत न पूछ जालिम दिल मचल जायेगा ,
मुद्दत से ठहरा जो वक्त का मंजर बदल जायेगा

न तपिश दे मोम के पुतले को निगाहों की यूँ 
पिघले बर्फ सा तुझमे लहू बन संवर जायेगा 

सर्द सिहरती वक्त की बाती जलती जतन से है 
रुखसती दीदार ए मंजर सहरा में बदल जायेगा 

गिरेगा आँख से मोती तेरा मेरी पलको पर संवर 
तू सीप बना गर स्वाति मोती में बदल जायेगा .-- विजयलक्ष्मी 

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