कैफियत न पूछ जालिम दिल मचल जायेगा ,
मुद्दत से ठहरा जो वक्त का मंजर बदल जायेगा
न तपिश दे मोम के पुतले को निगाहों की यूँ
पिघले बर्फ सा तुझमे लहू बन संवर जायेगा
सर्द सिहरती वक्त की बाती जलती जतन से है
रुखसती दीदार ए मंजर सहरा में बदल जायेगा
गिरेगा आँख से मोती तेरा मेरी पलको पर संवर
तू सीप बना गर स्वाति मोती में बदल जायेगा .-- विजयलक्ष्मी
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