Thursday, 20 February 2014

" बताना जरा ..इन्कलाब इबादत नहीं है क्या ,"

बताना जरा ..इन्कलाब इबादत नहीं है क्या ,
वतन के नाम पर अब शहादत नहीं है क्या 


वक्त को देखकर बदल गया मौसम का मिजाज 
हार जीत में अब वोटरों को दुकान नहीं है क्या .-- विजयलक्ष्मी


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चांदनी बिखरी चाँद खो गया .. बकाया बचा क्या है ,
जलते रहो यूँही ,,इससे बेहतर सूरज की सजा क्या है 


एक पत्थर और उछाल दो गगन का रंग बदल जायेगा 
उड़ता हुआ कोई और परिंदा जमी पर आ जायेगा .-- विजयलक्ष्मी



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पंख गिरवी है मगर हौसले जिन्दा 
ये अलग सी बात है इंसान सब मुर्दा 


चीखता है पसरकर मौन जंगल में 
लहू देखकर मेरा कंधे झुक गये कैसे.-- विजयलक्ष्मी


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उफ़ ये मुहब्बत बड़ी अजीब सी शै है ,
आँख में आंसू देकर मुस्कुराती बहुत है .


जब मुस्कुराते है होठ,.. बाखुदा यारा 
सितम तो देखो आँख को रुलाती बहुत है .- विजयलक्ष्मी



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