बताना जरा ..इन्कलाब इबादत नहीं है क्या ,
वतन के नाम पर अब शहादत नहीं है क्या
वक्त को देखकर बदल गया मौसम का मिजाज
हार जीत में अब वोटरों को दुकान नहीं है क्या .-- विजयलक्ष्मी
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चांदनी बिखरी चाँद खो गया .. बकाया बचा क्या है ,
जलते रहो यूँही ,,इससे बेहतर सूरज की सजा क्या है
एक पत्थर और उछाल दो गगन का रंग बदल जायेगा
उड़ता हुआ कोई और परिंदा जमी पर आ जायेगा .-- विजयलक्ष्मी
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पंख गिरवी है मगर हौसले जिन्दा
ये अलग सी बात है इंसान सब मुर्दा
चीखता है पसरकर मौन जंगल में
लहू देखकर मेरा कंधे झुक गये कैसे.-- विजयलक्ष्मी
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उफ़ ये मुहब्बत बड़ी अजीब सी शै है ,
आँख में आंसू देकर मुस्कुराती बहुत है .
जब मुस्कुराते है होठ,.. बाखुदा यारा
सितम तो देखो आँख को रुलाती बहुत है .- विजयलक्ष्मी
वतन के नाम पर अब शहादत नहीं है क्या
वक्त को देखकर बदल गया मौसम का मिजाज
हार जीत में अब वोटरों को दुकान नहीं है क्या .-- विजयलक्ष्मी
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चांदनी बिखरी चाँद खो गया .. बकाया बचा क्या है ,
जलते रहो यूँही ,,इससे बेहतर सूरज की सजा क्या है
एक पत्थर और उछाल दो गगन का रंग बदल जायेगा
उड़ता हुआ कोई और परिंदा जमी पर आ जायेगा .-- विजयलक्ष्मी
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पंख गिरवी है मगर हौसले जिन्दा
ये अलग सी बात है इंसान सब मुर्दा
चीखता है पसरकर मौन जंगल में
लहू देखकर मेरा कंधे झुक गये कैसे.-- विजयलक्ष्मी
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उफ़ ये मुहब्बत बड़ी अजीब सी शै है ,
आँख में आंसू देकर मुस्कुराती बहुत है .
जब मुस्कुराते है होठ,.. बाखुदा यारा
सितम तो देखो आँख को रुलाती बहुत है .- विजयलक्ष्मी
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