ए नर्म हवा तू उनको ख्वाब ए जुनूं से न जगा ,
होश में आने की अब कहाँ कोई दुआ या दवा.
न गम कोई मिले कहीं जो जख्म ताजा हो रहे
उडी उडी सी निकहत ए गुल खोई खोई सी हवा .
है वफा तरद्दुद में जिसके जी लिए इक जिन्दगी
रहम ओ सितम या बकाया कोई गम ए दास्ताँ .
वक्त चलता तकसीम कर तस्कीन से बैठा हुआ
दो कहाँ राह ए मुहब्बत रहबरी का मिला वास्ता .
वादा ए जुनूं खामोश हम तमाशा न बने हमनवा
होश औ खरोश खुदारा जानिब ए मंजिल हो सदा .-- विजयलक्ष्मी
होश में आने की अब कहाँ कोई दुआ या दवा.
न गम कोई मिले कहीं जो जख्म ताजा हो रहे
उडी उडी सी निकहत ए गुल खोई खोई सी हवा .
है वफा तरद्दुद में जिसके जी लिए इक जिन्दगी
रहम ओ सितम या बकाया कोई गम ए दास्ताँ .
वक्त चलता तकसीम कर तस्कीन से बैठा हुआ
दो कहाँ राह ए मुहब्बत रहबरी का मिला वास्ता .
वादा ए जुनूं खामोश हम तमाशा न बने हमनवा
होश औ खरोश खुदारा जानिब ए मंजिल हो सदा .-- विजयलक्ष्मी
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