" किसी की हैसियत घटाऊ
या कम करके आंकू
किसी को नीचा दिखाऊ
ये फितरत ही नहीं ,
मैं ,
शून्य बनकर भी खुश हूँ ,,
मुझसे ,
किसी को द्वेष तो नहीं
कभी जोड़ा नहीं तो घटाया भी नहीं
अक्सर मिलती हूँ ..
खुशियों की गुणक बनकर
सुंदर ..
अपनत्व भरा परिवेश होता भी वही " --- विजयलक्ष्मी
या कम करके आंकू
किसी को नीचा दिखाऊ
ये फितरत ही नहीं ,
मैं ,
शून्य बनकर भी खुश हूँ ,,
मुझसे ,
किसी को द्वेष तो नहीं
कभी जोड़ा नहीं तो घटाया भी नहीं
अक्सर मिलती हूँ ..
खुशियों की गुणक बनकर
सुंदर ..
अपनत्व भरा परिवेश होता भी वही " --- विजयलक्ष्मी
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