Saturday 20 September 2014

"...शून्य बनकर भी खुश हूँ "

" किसी की हैसियत घटाऊ 
या कम करके आंकू 
किसी को नीचा दिखाऊ 
ये फितरत ही नहीं ,
मैं ,
शून्य बनकर भी खुश हूँ ,,
मुझसे ,
किसी को द्वेष तो नहीं
कभी जोड़ा नहीं तो घटाया भी नहीं 
अक्सर मिलती हूँ ..
खुशियों की गुणक बनकर
सुंदर ..
अपनत्व भरा परिवेश होता भी वही
" --- विजयलक्ष्मी

No comments:

Post a Comment