Wednesday, 23 May 2012

नए बीजों की इजाद जमीं की खातिर अपनी ,


नए बीजों की इजाद जमीं की खातिर अपनी ,
नए प्रतिमान तलाशने है ,
उन्ही ख्वाबों के लिए नए रंग तलाशने है..
नए से अन्वेषण ,नए से नाम तलाशने है ..
ढूँढना है शब्दकोशों को नए रंग औ ढंग से,
किसी के बीजों से नए वृक्ष नहीं बनाने हमको ..
नाराज क्यूँ हों किसी चमन का माली ..
गर खुशबू औ रंगत बदलनी मंजूर नहीं तो कोई बात नहीं ...
नए प्रतिमान खोजने होंगे ..


खंगालना है इस दुनिया को नए तरीके से ,नई नजर से ...
सूरज को रश्क हुआ उसका उजाला क्यूँ लिया  ..
रौशनी के पेड़ किरण से नहाये क्यूँ है ...
क्यूँ बदल डाला रंग ओ ताब को इजाजत के बिना ...
श्वेत रंग क्यूं किसी के साथ चले ..
धवल रौशनी को सतरंगी बाना नहीं देना है ..
वक्त बदल जाये मगर पुरातन रंग को सहेजा क्यूँ  ...
कोई नए ढंग से सजाया क्यूँ 
हाँ हुआ है गुनाह ,....गर गुनाह है ..
मिल जाए सजा गर कोई सजा है ..
नए प्रतिमान ढूँढने हैं ...नी ,
कुछ वक्त लगेगा कोई बात नहीं ..
नए बीजों की इजाद  जमीं की खातिर अपफिर रफ्तार पकड़ेगा अपनी सी ...
न अफ़सोस कर ,कोई नई बात कर...
रंज नहीं है कुछ ...आश्चर्य बोध हुआ था थोडा ..
चल चलूँ ,...कुछ वक्त से वक्त की गुजारिश कर लूं ..
नए प्रतिमान बनाने होंगे ..
तलाशने होंगे ..खोजने होगें ...ढूँढने होंगें ...
सजाने होंगें ,गढने होंगे ,रंगने होगें ,करीने से बैठाने होंगें ,..--विजयलक्ष्मी 

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