नाराजगी ,इस कदर भी ठीक नहीं खुदारा ...
जिंदगी मौत के पायदान पर खड़ी हों जाये ..
तितलियाँ बरसाने लगे रंग काले पीले ...
आचरण की सभ्यता किनारे पर खड़ी हों जाये ..
सत्य संकेत मर गए थे समाधिस्थ हुए जब ...
अब जिंदगी कारण निवारण पर खड़ी हों जाये ..
चल दिए सफर पर अब जो सोचता हो सोच ले ..
आखिर साँझ अब इन्तजार पर खड़ी हों जाये ..
चलेगा सफर यूँ ही भरोसा नहीं गर अब तलक..
नाखुदा तुम हों ,दर मौत पर कब खड़ी हों जाये..
ले फिर मुबारकें और चले जा ,जो राह पसंद हों ...
बदलना क्यूँ राह गर मंजिल पर खड़ी हों जाये ..--विजयलक्ष्मी
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