तन्हा कहाँ हूँ मैं ,
ये नाचती जलोर्मी ....
मुस्कुराकर बहती हुई पवन झूमते लहराते तरु
मंद मंद अहसास देती है
बहला जाने को तत्पर..
गुनगुन भौरों की गुंजार
पंख फैलाये तितली
हवा के झूले पे बैठ
मतवारी पेंग बढा बैठी क्यूँ ,आज खुशी में नाच रही सी
दिखती है धरती
झूम रहा अम्बर बतला क्यूँ मन मेरे
या बस वहम हुआ दिल को ..
हौले हौले ये अहसास
मीठा सा मिलता क्यूँ है दिल को
जाने क्यूँ मन, मेरा मन.......
लगता है ...लहराता है
बादल उमड घुमड़ गाता है गीत सुरीले
हुआ नव वधु सा श्रृंगार
आज नवबेला महकी हों जैसे ..
मन तरंगित है जाने क्यूँ
उलझा उलझा सा खुद में
कदम उठते नहीं लगते
बहके बहके से लगते है
ये कौन सी रुत है आई
जैसे कानों में बजती शहनाई ..
और मैं दुल्हन सी खुद को
आज सजा बैठी क्यूँ ...
मेरे नैनो के सपनों में रंगीनियाँ
आज चमक चमक जाती है क्यूँ
क्या सच है प्रीतम के आने अहसास
या कोई ख्वाब है ये
जो मुझको डस लेगा ...
या लौट आई है स्मृतियाँ मन की मेरे
छन से.... फिर आवाज वही
घुंघरूं मेरी पायल के करते हैं झंकार
सुनो ,देखो मत ,कर लो आंखे बंद
मुझे अब लाज आने लगी है ....----------विजयलक्ष्मी
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