भीगे नम नयन तेरे ..
क्यूँ इतनी आतुरता है ..
माना मन जलता है ..
मैं मौन ...स्वीकार रही ...
निमंत्रण प्रेयस ..
तुम अधीर कितने क्यूँ ?
तुम ही हों मेरे और मैं ...मौन ..?
चाँदनी रात बैरं है मेरी ..
बोल कैसे स्वीकार करूं मैं ...?
आती हूँ पलकों में सजाकर ..
ख्वाब तुम्हारा मौन ...
अंगीकार हैं सब रंग अब प्रेयस ..
.....स्वीकार है .....प्रणय...
अंतस उजास भर अब ..
और सुन मुझे भीतर अपने ..
तुम ही हों ..और मैं मौन .....|
क्यूँ इतनी आतुरता है ..
माना मन जलता है ..
मैं मौन ...स्वीकार रही ...
निमंत्रण प्रेयस ..
तुम अधीर कितने क्यूँ ?
तुम ही हों मेरे और मैं ...मौन ..?
चाँदनी रात बैरं है मेरी ..
बोल कैसे स्वीकार करूं मैं ...?
आती हूँ पलकों में सजाकर ..
ख्वाब तुम्हारा मौन ...
अंगीकार हैं सब रंग अब प्रेयस ..
.....स्वीकार है .....प्रणय...
अंतस उजास भर अब ..
और सुन मुझे भीतर अपने ..
तुम ही हों ..और मैं मौन .....|
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