जुगनू सा अहसास टिमटिमा रहा है आज भी ..
वो तस्वीर जिसका तसव्वुर हम कितनी बार करते है ..
शायद भूलते ही नहीं पलभर को भी ..
नींदों की ख्वाहिश अब कहीं से तो लानी होगी ...गुजारिश करेंगें ..
परवरदिगार से कहा था ..सताना मत... पर सुनने को राजी नहीं लगता ..
धुंधली सी क्यूँ हों रही है .....धुआँ धुँआ है सब कुछ ,,और
मौन की भाषा को चीरती ये आवाज आज...मुझे बहा रही है ....सन्नाटा बोला है ..
शब्दों में सुनी आवाज कानों में सुनाई दी और....
उतर गयी भीतर गहरे जैसे कुएं में या
ये वक्त रंग क्यूँ रहा है ...आज बोल ..नया सा है सब ..हाँ सब कुछ ..
नहीं मालूम दर्द चल दिया .....जानिब किसकी ...
जलकण मेरे दामन से लिपटे है हमेशा के लिए हिफाजत से
चैन शायद ही आयेगा बेगाना हुआ जाता है .. वक्त गुजरता है.
शिकायत कैसी है ये ...सब साथ ही है चल पड़े है कदम ...देख ले
मेरी अमानत रहने दे वही महकने दे .. .गुलों को और बिखरने दे अब अहसास को
निकहत ए गुल ..अपना रंग जमा ही गयी और गुमशुदा हम गिने गए
तलाश पूरी कर वर्ना मौत दे दे ..--विजयलक्ष्मी
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