Tuesday, 29 May 2012

अदा उनकी !

जानकर भी अनजान बनना ,
   देखकर फिर फेर लेना नजरें ,
     अजब ठहरी, सरेआम कत्ल करने की अदा उनकी !

जुनून ए वफा आँखों में दिखता है ,
   अँधेरे में भी आहट सांसों कि जानते हैं,
       उफ़,दिन के उजाले में बेवफा दिखने की अदा उनकी !

 जाने क्यूँ दिल नफरत भी नहीं करता ,
    नाराजगी कैसी उल्फत की राह में,
        है गजब ,नजरों से वादा, लब न खोलने की अदा उनकी !

कहते हैं हर एक बात नजरों से अपनी ,
     खुशियों को दामन में डाल मेरे ,
         ओह ,गमों को भीतर ही खुद में समेटने की अदा उनकी !

अहसास क्यूँकर छिपकर जीते है जिंदगानी ,
     पीकर घूंट गम के दिखाते हैं रवानी ,
          आह ,जलाकर खुद को खुद में दफनाने की अदा उनकी !
                                                                     --विजयलक्ष्मी 

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