कलम से..
Monday, 28 May 2012
तो गजल बनती है ..
पिघलते है पत्थर मोम की तरह तो गजल बनती है
..
जिंदगी झुलसती है दग्ध सूरज की रौशनी में, तो गजल बनती है
विजयलक्ष्मी
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