"शब ए हिज्र का जिक्र भी करता है कौन ,
ये अलग बात है हमे इन्तजार बकाया है ||
शब औ गम में हम गुम हुए इसतरह ,
लौट गयी खुशियों का एतबार बकाया है ||
कब छप गयी तस्वीर मालूम न हुआ ,
यूँ हरफ हरफ बांचना हर बार बकाया है ||
तिलिस्म हो जिसे टूटना भी गंवारा नहीं,
सच की छाती पे झूठा इनकार बकाया है ||
जिन्दा हूँ जलकर भी कही अँधेरे में ,
रौशनी के बाद भी अन्धकार बकाया है || "--- विजयलक्ष्मी
ये अलग बात है हमे इन्तजार बकाया है ||
शब औ गम में हम गुम हुए इसतरह ,
लौट गयी खुशियों का एतबार बकाया है ||
कब छप गयी तस्वीर मालूम न हुआ ,
यूँ हरफ हरफ बांचना हर बार बकाया है ||
तिलिस्म हो जिसे टूटना भी गंवारा नहीं,
सच की छाती पे झूठा इनकार बकाया है ||
जिन्दा हूँ जलकर भी कही अँधेरे में ,
रौशनी के बाद भी अन्धकार बकाया है || "--- विजयलक्ष्मी
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