Wednesday, 27 August 2014

"और मैं ....मुस्कुराती हूँ "

एक सच सुनाऊ ..
मनन करना तुम 
बताना क्या गलत हूँ मैं 
मैं जानती हूँ 
समझती हूँ तुम्हे 
और तुम 
तुम जीतना चाहते हो मुझसे ..
और मैं ...
मैं भी जीतना चाहती हूँ 
लेकिन ..तुम्हे ,
तुमसे नहीं 
तुम्हे हार पसंद ही नहीं 
और मैं ..
हाँ ...मैं हारती हूँ
तुम्हे खुश देखने के लिए 
तुम मेरी हार मुस्कुराते हो 
और मैं ..
मुस्कुराती हूँ 
तुम्हारी मुस्कुराहट पर 
और तुम ..
संतुष्ट करते हो अपने दम्भ को 
और मैं ..
बस "अपने प्रेम को "-- विजयलक्ष्मी 

3 comments:

  1. wah ! hum striyan ye shayad hamesha hi karti hain...umda rachna

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  2. और मैं ..
    हाँ ...मैं हारती हूँ
    तुम्हे खुश देखने के लिए
    तुम मेरी हार मुस्कुराते हो
    और मैं ..
    मुस्कुराती हूँ
    तुम्हारी मुस्कुराहट पर
    और तुम ..
    संतुष्ट करते हो अपने दम्भ को
    और मैं ..
    बस "अपने प्रेम को "
    भावनाओं का सागर है आपके शब्दों में ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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