तुम नहीं बोले ..
सवाल मुझे कचौटता रहा
मैं ही गलत हूँ ..
या गलत गदला हो चुका है मेरा मन
मेरी यात्रा प्रेम से शुरू प्रेम पर खत्म होनी तय थी
ये देह कहाँ से आगयी
जैसे भैसे वेश्या हो तलैया में लेटी मैली सी मिटटी में सनी
क्या सचमुच तुम्हे लगा ..
मैंने देह भेजी तुम्हारे पास ..?
या देह मांग ली तुमसे
मैं सदमे में हूँ आजतक
आत्मा में इतना असर देह का
क्या सचमुच सड़ चुका है मेरी आत्मा का व्यवहार
क्या मेरी भावना का प्रेम नहीं है आधार
अगर हाँ ,..तो लज्जित हूँ मैं ..तुम से ..अपने आप से
मेरा त्याग किया जाना ही उचित है
देह को देह की जरूरत ..
गड़ रही हूँ मैं कही अँधेरे कोने में रात के
मुझे छूना मत ..
तुम्हे मैला नहीं कर सकती कभी
अपमान होगा ,
प्रेम का ..
मेरे भगवान का
हाँ ..पूजा था तुम्हे भगवान बनाकर
और ..भूल गयी थी देह और उसकी कामना
भूलवश कहूं या जो भी तुम चाहो ..
गुनाह किया तो सजा भी जो तुम चाहो ..
मेरी मंजिल के रास्ते में देह ,,
मुझे झुलसा गयी ये आग
बाकी ...क्या कहू
या मैं छद्म आवरण हूँ भीतर से बाहर तक तुम नहीं बोले ..
सवाल मुझे कचौटता रहा
मैं ही गलत हूँ ..
या गलत गदला हो चुका है मेरा मन
मेरी यात्रा प्रेम से शुरू प्रेम पर खत्म होनी तय थी
ये देह कहाँ से आगयी
जैसे भैसे वेश्या हो तलैया में लेटी मैली सी मिटटी में सनी
क्या सचमुच तुम्हे लगा ..
मैंने देह भेजी तुम्हारे पास ..?
या देह मांग ली तुमसे
मैं सदमे में हूँ आजतक
आत्मा में इतना असर देह का
क्या सचमुच सड़ चुका है मेरी आत्मा का व्यवहार
क्या मेरी भावना का प्रेम नहीं है आधार
अगर हाँ ,..तो लज्जित हूँ मैं ..तुम से ..अपने आप से
मेरा त्याग किया जाना ही उचित है
देह को देह की जरूरत ..
गड़ रही हूँ मैं कही अँधेरे कोने में रात के
मुझे छूना मत ..
तुम्हे मैला नहीं कर सकती कभी
अपमान होगा ,
प्रेम का ..
मेरे भगवान का
हाँ ..पूजा था तुम्हे भगवान बनाकर
और ..भूल गयी थी देह और उसकी कामना
भूलवश कहूं या जो भी तुम चाहो ..
गुनाह किया तो सजा भी जो तुम चाहो ..
मेरी मंजिल के रास्ते में देह ,,
मुझे झुलसा गयी ये आग
बाकी ...क्या कहू
या मैं छद्म आवरण हूँ भीतर से बाहर तक --- विजयलक्ष्मी
सवाल मुझे कचौटता रहा
मैं ही गलत हूँ ..
या गलत गदला हो चुका है मेरा मन
मेरी यात्रा प्रेम से शुरू प्रेम पर खत्म होनी तय थी
ये देह कहाँ से आगयी
जैसे भैसे वेश्या हो तलैया में लेटी मैली सी मिटटी में सनी
क्या सचमुच तुम्हे लगा ..
मैंने देह भेजी तुम्हारे पास ..?
या देह मांग ली तुमसे
मैं सदमे में हूँ आजतक
आत्मा में इतना असर देह का
क्या सचमुच सड़ चुका है मेरी आत्मा का व्यवहार
क्या मेरी भावना का प्रेम नहीं है आधार
अगर हाँ ,..तो लज्जित हूँ मैं ..तुम से ..अपने आप से
मेरा त्याग किया जाना ही उचित है
देह को देह की जरूरत ..
गड़ रही हूँ मैं कही अँधेरे कोने में रात के
मुझे छूना मत ..
तुम्हे मैला नहीं कर सकती कभी
अपमान होगा ,
प्रेम का ..
मेरे भगवान का
हाँ ..पूजा था तुम्हे भगवान बनाकर
और ..भूल गयी थी देह और उसकी कामना
भूलवश कहूं या जो भी तुम चाहो ..
गुनाह किया तो सजा भी जो तुम चाहो ..
मेरी मंजिल के रास्ते में देह ,,
मुझे झुलसा गयी ये आग
बाकी ...क्या कहू
या मैं छद्म आवरण हूँ भीतर से बाहर तक तुम नहीं बोले ..
सवाल मुझे कचौटता रहा
मैं ही गलत हूँ ..
या गलत गदला हो चुका है मेरा मन
मेरी यात्रा प्रेम से शुरू प्रेम पर खत्म होनी तय थी
ये देह कहाँ से आगयी
जैसे भैसे वेश्या हो तलैया में लेटी मैली सी मिटटी में सनी
क्या सचमुच तुम्हे लगा ..
मैंने देह भेजी तुम्हारे पास ..?
या देह मांग ली तुमसे
मैं सदमे में हूँ आजतक
आत्मा में इतना असर देह का
क्या सचमुच सड़ चुका है मेरी आत्मा का व्यवहार
क्या मेरी भावना का प्रेम नहीं है आधार
अगर हाँ ,..तो लज्जित हूँ मैं ..तुम से ..अपने आप से
मेरा त्याग किया जाना ही उचित है
देह को देह की जरूरत ..
गड़ रही हूँ मैं कही अँधेरे कोने में रात के
मुझे छूना मत ..
तुम्हे मैला नहीं कर सकती कभी
अपमान होगा ,
प्रेम का ..
मेरे भगवान का
हाँ ..पूजा था तुम्हे भगवान बनाकर
और ..भूल गयी थी देह और उसकी कामना
भूलवश कहूं या जो भी तुम चाहो ..
गुनाह किया तो सजा भी जो तुम चाहो ..
मेरी मंजिल के रास्ते में देह ,,
मुझे झुलसा गयी ये आग
बाकी ...क्या कहू
या मैं छद्म आवरण हूँ भीतर से बाहर तक --- विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment