Thursday 7 August 2014

" हे राम ! तुम्हे मर्यादा पुरुषोत्तम कैसे कह दूं मैं ?"



" हे राम तुम्हे मर्यादा पुरुषोत्तम कैसे कह दूं मैं ,
तुमने मर्यादा धारी ,लेकिन किस अर्थ में ,
बेटे मर्यादित होंगे मात पिता के तुम .
माना तुम भाई भी बहुत सुघर सुंदर और प्यारे रहे होंगे 
ममता बरसाई होगी तुमने अपने बेटो पर ..लेकिन 
माना तुम योद्धा भी बहुत भारी ...तुमने रावण सेना मारी माना किन्तु 
तुम मर्यादित हो कैसे मानू ..
तुम मर्यादित हो कैसे मानू ..
पूज रही हूँ तुम्हे जन्म से किन्तु ..
कुछ प्रश्न मन के पटल पर उभरते है प्रतिपल 
चलती है छाया चलचित्र सी प्रतिपल 
क्या कोई उत्तर मुझको मिल सकेगा 
तुलसी के राम कहू या वाल्मीकि के राम 
हे दुनिया के मर्यादित राम ,,
तुमने मांगी अग्निपरीक्षा सीता से ..
तुम लीलाधारी होंगे तो हुआ करे ..
तुम लीलाधारी होंगे तो हुआ करे ..
मेरा मन अधीर हुआ सीता की सुनसुन कर 
जलकर भी जली नहीं जलकर मरी नहीं ..जिन्दा ही जिन्दा 
फिर राजा की मर्यादा खूब निभाई तुमने लेकिन ..
सीता को रानी के पद से दिया उतार कान के कितने कच्चे ..
समाज की मर्यादा धारी तुमने ,,सीता के प्रति अवसरधारी तुम 
सीता ने प्रस्थान किया था तुम संग सीता मर्यादित नारी तुम कैसे ..मर्यादाधारी ?
गर्भवती नारी को तुमने भेजा घर से बाहर कैसी मर्यादा तुम्हारी...हे मर्यादाधारी |
नारी की हर मर्यादा सीता ने धारी किन्तु ..
पुरुष प्रधान समाज रहा कब खुद मर्यादाधारी 
हे मर्यादा पुरुषोत्तम ...गर यही मर्यादाये हैं ...
तो ...मुझको पुरुष बनाना मत .
जो पुरुष तन दो कभी ...अपनी मर्यादा सिखाना मत 
अन्यथा मुझको खुद के भीतर झांकना होगा 
एक पत्नीव्रत को पूरा पूरा आंकना होगा 
पति बने ..कहाँ गयी पति मर्यादा तुम्हारी 
अजन्मे भ्रूणों के प्रति क्या इतनी ही चिंता थी तारी 
कैसे मर्यादित पिता हुए..देखी नहीं प्रसव वेदना ममता की .न बालक की पहली किलकारी 
हे मर्यादाधारी ......क्या पत्नी के प्रति बस इतनी ही मर्यादा रही तुम्हारी 
समा गयी धरती में हो लाचार ...महान सीता बनकर बेचारी 
हे राम तुम्हे मर्यादा पुरुषोत्तम कैसे कह दूं मैं ,

तुमने मर्यादा धारी ,लेकिन किस अर्थ में ? "--- विजयलक्ष्मी

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