ये तथाकथित आजादी ...वास्तविक आजादी में कब बदलेगी ?-- विजयलक्ष्मी
1.
माँ हम विदा हो जाते हैं, हम विजय केतु फहराने आज।
तेरी बलिवेदी पर चढ़कर माँ निज शीश कटाने आज॥
मलिन वेश ये आँसू कैसे, कंपित होता है क्यों गात?
वीर प्रसूति क्यों रोती है, जब लग खंग हमारे हाथ॥
धरा शीघ्र ही धसक जाएगी, टूट जाएँगे न झुके तार।
विश्व कांपता रह जाएगा, होगी माँ जब रण हुंकार॥
नृत्य करेगी रण प्रांगण में, फिर-फिर खंग हमारी आज।
अरि शिर गिरकर यही कहेंगे, भारत भूमि तुम्हारी आज॥
अभी शमशीर कातिल ने, न ली थी अपने हाथों में।
हजारों सिर पुकार उठे, कहो दरकार कितने हैं॥----चन्द्रशेखर आजाद
2.
उसे यह फ़िक्र है हरदम….।
नया तर्जे-जफ़ा क्या है?
हमें यह शौक देखें,
सितम की इंतहा क्या है?
दहर से क्यों खफ़ा रहे,
चर्ख का क्यों गिला करें,
सारा जहाँ अदू सही,
आओ मुकाबला करें।
कोई दम का मेहमान हूँ,
ए-अहले-महफ़िल,
चरागे सहर हूँ,
बुझा चाहता हूँ।
मेरी हवाओं में रहेगी,
ख़यालों की बिजली,
यह मुश्त-ए-ख़ाक है फ़ानी,
रहे, रहे न रहे।---- भगत सिंह
हमें यह शौक देखें,
सितम की इंतहा क्या है?
दहर से क्यों खफ़ा रहे,
चर्ख का क्यों गिला करें,
सारा जहाँ अदू सही,
आओ मुकाबला करें।
कोई दम का मेहमान हूँ,
ए-अहले-महफ़िल,
चरागे सहर हूँ,
बुझा चाहता हूँ।
मेरी हवाओं में रहेगी,
ख़यालों की बिजली,
यह मुश्त-ए-ख़ाक है फ़ानी,
रहे, रहे न रहे।---- भगत सिंह
3.
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ
मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ
माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला
जिह्वा पे गीत तू हो, तेरा ही नाम गाऊँ
जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे
उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ
माई समुद्र जिसकी पद रज को नित्य धोकर
करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ
सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर
वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ
तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ।
मन और देह तुझ पर बलिदान कर मैं जाऊँ---रामप्रसाद बिस्मिल
मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ
माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला
जिह्वा पे गीत तू हो, तेरा ही नाम गाऊँ
जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे
उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ
माई समुद्र जिसकी पद रज को नित्य धोकर
करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ
सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर
वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ
तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ।
मन और देह तुझ पर बलिदान कर मैं जाऊँ---रामप्रसाद बिस्मिल
और कितने बलिदान ....अथवा आजादी का पाखंड यूँही चलता रहेगा --विजयलक्ष्मी
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