Friday, 1 August 2014

" बोल पड़ा है दुश्मन बयाँ कर दी न हकीकत "

"ये न पूछ मुझसे मुफलिसी ने क्या दिया ,
देखलो दरमियाँ से दौलत की दीवार हट गयी ||

असलहो की गिनती नहीं आती अभी तुम्हे
मुहब्बत की बंदूक मझधार में पतवार बन गयी||

खंजर के मंजर गोली की बोली की अपनी जगह
जहर माकूल जगह गिरा देखोगे खाई पट गयी ||

संसद में हंगामा नियत बेरुखी से था तुम्हारी 
राष्ट्रहित, असलहे लिए सेना सरहद से सट गयी|| 

बोल पड़ा है दुश्मन बयाँ कर दी न हकीकत 
हालत घुसपैठियों की पतली ,तहरीर पलट गयी ||" -- विजयलक्ष्मी

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