"ये न पूछ मुझसे मुफलिसी ने क्या दिया ,
देखलो दरमियाँ से दौलत की दीवार हट गयी ||
असलहो की गिनती नहीं आती अभी तुम्हे
मुहब्बत की बंदूक मझधार में पतवार बन गयी||
खंजर के मंजर गोली की बोली की अपनी जगह
जहर माकूल जगह गिरा देखोगे खाई पट गयी ||
संसद में हंगामा नियत बेरुखी से था तुम्हारी
राष्ट्रहित, असलहे लिए सेना सरहद से सट गयी||
बोल पड़ा है दुश्मन बयाँ कर दी न हकीकत
देखलो दरमियाँ से दौलत की दीवार हट गयी ||
असलहो की गिनती नहीं आती अभी तुम्हे
मुहब्बत की बंदूक मझधार में पतवार बन गयी||
खंजर के मंजर गोली की बोली की अपनी जगह
जहर माकूल जगह गिरा देखोगे खाई पट गयी ||
संसद में हंगामा नियत बेरुखी से था तुम्हारी
राष्ट्रहित, असलहे लिए सेना सरहद से सट गयी||
बोल पड़ा है दुश्मन बयाँ कर दी न हकीकत
हालत घुसपैठियों की पतली ,तहरीर पलट गयी ||" -- विजयलक्ष्मी
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