"मन्दिर में पत्थर पूजता है
सडके असलहा धारियों के नाम लिखी
शिलालेख लिख डाले तारीफ़ में
मौत के सौदागरों के
पूज रहे हैं उन्हें खुदा बनाकर
धर्म बदलकर पुरखो को भूल गये
ब्रांडेड धारी हल बैल भूल गये
भूल गये जमीं का सौंधापन
खुशबू जो महकाती थी अंतर्मन को
बेच रहा है माँ जिसे कहता नहीं थकता
कीमत कई गुनी पाकर अमीर गिन रहा है खुद को
तुझे गोद नसीब नहीं न लाड़ दुलार
बता तुझसा गरीब कौन
न गंध मिली न आंचल माँ का
रूह का सकूं ढूंढता है लहू के सौदे में
पूजता है मौत का देवता और जिन्दगी की आस रखे है
मन्दिर में पत्थर पूजता है
सडके असलहा धारियों के नाम लिखी
शिलालेख लिख डाले तारीफ़ में
मौत के सौदागरों के
इन्सान को भी पूज कभी इंसान की तरह "--- विजयलक्ष्मी
सडके असलहा धारियों के नाम लिखी
शिलालेख लिख डाले तारीफ़ में
मौत के सौदागरों के
पूज रहे हैं उन्हें खुदा बनाकर
धर्म बदलकर पुरखो को भूल गये
ब्रांडेड धारी हल बैल भूल गये
भूल गये जमीं का सौंधापन
खुशबू जो महकाती थी अंतर्मन को
बेच रहा है माँ जिसे कहता नहीं थकता
कीमत कई गुनी पाकर अमीर गिन रहा है खुद को
तुझे गोद नसीब नहीं न लाड़ दुलार
बता तुझसा गरीब कौन
न गंध मिली न आंचल माँ का
रूह का सकूं ढूंढता है लहू के सौदे में
पूजता है मौत का देवता और जिन्दगी की आस रखे है
मन्दिर में पत्थर पूजता है
सडके असलहा धारियों के नाम लिखी
शिलालेख लिख डाले तारीफ़ में
मौत के सौदागरों के
इन्सान को भी पूज कभी इंसान की तरह "--- विजयलक्ष्मी
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