Thursday, 21 August 2014

" ये अलग बात है ..हीर नहीं हूँ मैं"

सिद्धो ने सिद्धांत सिद्ध खुद कितने किये ,
बुद्ध की बुद्धि का राज कितना बकाया है 
कौए गीत गाये कैसे ,,कोयल ने क्यूँ भैरवी राग सुनाया है 
रात के गलीचे पर चांदनी की चर्चा चाँद से पूछ कर देखना 
सूरज को दर्द क्यूँ है नींद से किसने जगाया है 
साँझ उतर रही है उम्र पर ..
रंग भोर का छाया है 
शातिर लोमड़ी को देखो मातम जंगल में मचाया है 
शेर के घर में फिर बन्दर ने तूफ़ान उठाया है 
बच्चे की अनगढ़ बतियाँ उसे किसने पढाया है
पकड़ लो माँ को उसकी जिसने जन्म का बोझ उठाया है
ये अलग बात है ...
दर्द ने उसे पहले ही सताया है
क्यूँ बिस्तर पर बिखरी देह को रूपये का लालच आया है
माटी ने माटी को फिर भरमाया है
चरित्र की चर्चा में फिर उसने नया पर्चा बनाया है
खुद चौराहे पर खड़ा है कुँवारी देह पर नजर को खूब गडाया है
बेटी थी किसी वह भी किसी की जिसे फातिमा बताया है
मीरा घर न हो मेरे ...
मर्दों को डर सताया है
भूल जाते है कंस का वध औ उसकी उम्र ,किसने खुद को कृष्ण बताया है
इलाज मस्तिष्क का होना अभी बकाया है
भगवा रंग पर देखो खून का समन्दर बनाया है
श्वेत रंग भी तो तुझको पसंद नहीं आया है
मौसम की बात मत करना मुझसे ..
मुझपर प्रेमरंग छाया है
ये अलग बात है ..हीर नहीं हूँ मैं ,
खुद को लक्ष्मीबाई बनाया है -- विजयलक्ष्मी

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