रहने दे कयामत से पहले कयामत न बुला ,
बिन मौसम डाली पर यूँ कोई गुल न खिला.
महज अफसाना न समझ हकीकत बयाँ को
दास्ताँ वक्त सुना देगा यूँ मन वीणा न बजा .
प्रस्फुटित हर अहसास मौज हुआ जाता है
पत्थर सा तसव्वुर ही सही मुझे बुत न बना.- विजयलक्ष्मी
बिन मौसम डाली पर यूँ कोई गुल न खिला.
महज अफसाना न समझ हकीकत बयाँ को
दास्ताँ वक्त सुना देगा यूँ मन वीणा न बजा .
प्रस्फुटित हर अहसास मौज हुआ जाता है
पत्थर सा तसव्वुर ही सही मुझे बुत न बना.- विजयलक्ष्मी
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