Thursday, 3 October 2013

इन्तजार ए शम्स है अभी गहरी रात दिखती है



रंग ए गुलशन जब भरे तो ये बहार दिखती है ,


रंग ए वतन पे मेहरबाँ तो ये तलवार दिखती है 


तुलिका या कलम है,ये क्यूँ बेजार दिखती है ,


देश की खातिर ही सबकुछ निसार लिखती है 


ढीठ है ये नेता, निकम्मी ये सरकार दिखती है 


एक उम्र बीत गयी रफ्तार से बेकार दिखती है 


हद ए इंतजारी में नादानियाँ इंतजार लिखती हैं 


सियासी चाल रियासती दिखावा बेकार लिखती है 


न्याय की चौखट सबको नहीं गुनहगार लिखती है


दुश्मन से मिलाते हाथ भाई को खंजर दिखती है 


सी बी आई भी अब करोड़ो को हजार लिखती है 


गुनहगार कोई खास क्लीनचिट इन्तजार करती है 


देश की माली हालत पतली तबियत बेजार दिखती है


नीमहकीम खतरा ए जान सत्य से बेजार दिखती है


इन्तजार ए शम्स है अभी गहरी रात दिखती है.- विजयलक्ष्मी

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