तेरी तस्वीर से गुफ्तगू परेशां तुम, दर्द होता है ,
दर्द तुम्हारा बढ़े अपना मौसम भी जर्द होता है .
मौज ए मिसल सबा में थे रंग सब तुम्हारे ही
मुतमईन तुम नहीं गर तो हमे भी दर्द होता है
किसी और का हाथ दूर ख्वाब नहीं थाम सके
उड़ान न उड़े तुम्हारे संग हम बेडा-गर्क होता है
खेमे भी थे तुम्हारी यादे हिस्सा ए कायनात
झंझा उड़ाकर हमे कर न दे जुदा , दर्द होता है
इन्तजार यही रहा एक आवाज देदो मुझे तुम
शुक्रिया तुमने मौन तोडा बता क्या खर्च होता है .
.- विजयलक्ष्मी
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