Friday, 25 October 2013

जमीं पे उतर के मिल..

दर्द ए बयार न देख अब झोकें सा मिल ,
काँटें बहुत है चमन में तू गुलों सा खिल .

रंग ए झिलमिल सी ख़ूबसूरती नजर में ,
वो बुत संगमरमरी से, किरदारों से मिल. 

न आंसूं बहे ,न रुके ही पलक पर ढलके ,
डूबते उतरते नजर के सितारों से मिल .

इन्तजार ए वफा तो आज भी है मगर,
सूरज के बाद छिटके,न अंधेरों से मिल .

सितारा गगन का फलक पर बसा है अब ,
मिलना है तो सुन , जमीं पे उतर के मिल....
.विजयलक्ष्मी 

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