बहुत बेताब हुआ है दिल नजर भर देख लू
जिन्दगी कह उठी तुम मिलो तो संवर जाऊं
इंतजार ए हद कोई तो हो तुम्हारी भी कभी
कहने लगा है मन अब जिद पर उतर आऊँ
रात गहरा रही है और अँधेरा चस्पा है दरो पे
क्यूँ न राह पर तेरी शमा बनकर बिखर जाऊं
आओ कुछ ख्वाब अपने पलकों पर उतार ले
ख्वाब ये ख्वाब सा तेरी पलकों में संवर जाऊं
पुकार लो मुझे कुछ इस तरह.. होठ न हिले
सुनकर आवाज तुम्हारी जहां हूँ बिखर जाऊं .- विजयलक्ष्मी
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