ये जो उतर आते हैं पलको में दुआ बनकर छलकते है ,
पाकीजा से मोती ,अहसास के समन्दर से निकलते हैं
रंग श्वेत जिनका आभा रक्तिम सी पिरोये स्नेह धागे में
छलकती है पाकीजगी जिनसे दामन में मेरे चमकते हैं
चाँद कह दूं सूरज कहूं या ईमान का आना ईमान पर है
जुगनू सा चमक लहरता जैसे पहाड़ी झरने छलकते हैं .- विजयलक्ष्मी
पाकीजा से मोती ,अहसास के समन्दर से निकलते हैं
रंग श्वेत जिनका आभा रक्तिम सी पिरोये स्नेह धागे में
छलकती है पाकीजगी जिनसे दामन में मेरे चमकते हैं
चाँद कह दूं सूरज कहूं या ईमान का आना ईमान पर है
जुगनू सा चमक लहरता जैसे पहाड़ी झरने छलकते हैं .- विजयलक्ष्मी
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