शब्दों से भर जाता पेट गर ...
दुनिया में कोई भी तो भूखा न सोता .
अपनापन खत्म न होता गर
इंसान कोई इतना भी तन्हा न होता .
अमीर रोटी को न फेंकता गर
किसी गरीब का बालक भूखा न रोता .
भूख का पता न चला उम्रभर
एक रोटी को तरस भूखा मरा न होता .
ये सूरज धरती पे जलता गर
गरीब का चुल्हा आग को तरसा न होता .- विजयलक्ष्मी
दुनिया में कोई भी तो भूखा न सोता .
अपनापन खत्म न होता गर
इंसान कोई इतना भी तन्हा न होता .
अमीर रोटी को न फेंकता गर
किसी गरीब का बालक भूखा न रोता .
भूख का पता न चला उम्रभर
एक रोटी को तरस भूखा मरा न होता .
ये सूरज धरती पे जलता गर
गरीब का चुल्हा आग को तरसा न होता .- विजयलक्ष्मी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार - 06/10/2013 को
ReplyDeleteवोट / पात्रता - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः30 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
दर्शन जी आपका बहुत बहुत आभार
Deletebahut khoob..
ReplyDeleteये सूरज धरती पे जलता गर
ReplyDeleteगरीब का चुल्हा आग को तरसा न होता
अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है
सुरेश राय
कभी यहाँ भी पधारें और टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें
http://mankamirror.blogspot.in