सफर
चल पड़ा है
नई डगर
समय
रपट रहा है
मुट्ठी से
मेरी
कुछ पल
बाँधने को आतुर मन
जो ..
दे सके
एक मुस्कुराहट
घायल लौटने पर
तुम्हे
बिखर जाये
ख़ुशी
और महक उठे
मन आंगन
बहक उठे
मौसम
और जीवन
तुम संग
महका बहका सा .- विजयलक्ष्मी
चल पड़ा है
नई डगर
समय
रपट रहा है
मुट्ठी से
मेरी
कुछ पल
बाँधने को आतुर मन
जो ..
दे सके
एक मुस्कुराहट
घायल लौटने पर
तुम्हे
बिखर जाये
ख़ुशी
और महक उठे
मन आंगन
बहक उठे
मौसम
और जीवन
तुम संग
महका बहका सा .- विजयलक्ष्मी
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