Tuesday, 1 October 2013

मगर फिर भी ..

यूँ ही कुछ सुकूं तो है मगर फिर भी ,
तस्वीर पर नजर तो है मगर फिर भी .

चांदनी से लग रहा है चाँद था यहींकहीं 
दीखता नूर है नजर में मगर फिर भी .

कुछ कहना चाहते हो मुझसे , कह दो 
मानना चाहते हैं तुम्हारी मगर फिर भी.

कैसे समेटूं मैं शब्दों का बंधन भेज दो 
आवारगी छूती नहीं यूँतो मगर फिर भी.

टूट न जाये बाँध जो लपेटे है लहरों को
यूँ तो किनारा मिल गया मगर फिर भी .

तैरने की कोशिश बकाया डूबने का डर
बिन पतवार है कश्ती ....मगर फिर भी .- विजयलक्ष्मी 

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