अगर दिल दिया होता और तुम मिल गये होते
वक्त का आलम ऐसा न होता गुल खिल गये होते
महक उठती सुबह शाम हमारी यूँ न रो रहे होते
जो दीवाना कह गये अभी हमको यूँ न कह रहे होते
बेरुखी उनकी दर्द दे जाती है तन्हाइयों के चलते
जीते है उन्ही के साथ वरना अबतक मर गये होते
न शऊर था नुमाया होने का न चुप ही रह सके
मुश्किल यही है हमारी ,पर्दे हया के न हट गये होते
झांकते न यूँ बंद खिडकियों से इस तरह हम
करते सौदा औरो की तरह बेमोल न बिक गये होते .
आईने पर नजरे उठाते है साजो श्रृंगार की खातिर
अब देने लगा है धोखा ये भी तुम यूँ न दिख रहे होते.
आईने पर नजरे उठाते है साजो श्रृंगार की खातिर
अब देने लगा है धोखा ये भी तुम यूँ न दिख रहे होते.
- विजयलक्ष्मी
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