वो सांकल खनकती है हवा से जब दर की मेरे ,
एक अहसास चला आता है ख्वाब सा तुम तो नहीं
एक स्मित सी उभर आती है होठो पर खुद ब खुद
जी सकेंगे इस ख्वाब को कहकर क्या तुम तो नहीं
कल उलझ गया था आंचल यूँही उड़कर गुलाब से
महकाता है मुझे लिए शुलों सी चुभन तुम तो नहीं
टीस सी उठती है घुलकर हवाओं में मुझे संवारती है
लिए संग यादों के मेले घुमती हूँ जिसे तुम तो नहीं
ओढ़ी थी चुनरी वो चटक से रंग की , भायी दिल को
उठता है ख्याल दिल में उसे लाये कहीं तुम तो नहीं.- विजयलक्ष्मी
एक अहसास चला आता है ख्वाब सा तुम तो नहीं
एक स्मित सी उभर आती है होठो पर खुद ब खुद
जी सकेंगे इस ख्वाब को कहकर क्या तुम तो नहीं
कल उलझ गया था आंचल यूँही उड़कर गुलाब से
महकाता है मुझे लिए शुलों सी चुभन तुम तो नहीं
टीस सी उठती है घुलकर हवाओं में मुझे संवारती है
लिए संग यादों के मेले घुमती हूँ जिसे तुम तो नहीं
ओढ़ी थी चुनरी वो चटक से रंग की , भायी दिल को
उठता है ख्याल दिल में उसे लाये कहीं तुम तो नहीं.- विजयलक्ष्मी
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