Friday, 11 October 2013

गहन तिमिर और सूर्य का प्रकाश

गहन तिमिर और सूर्य का प्रकाश 
समय की पीठ पर सवार आस 
खो रही है वजूद और अंतिम यात्रा की ओर
कुछ व्यर्थ सा समय और मृत्यु की चौखट का दीप करता सत्कार 
हडबडाहट और आहट रक्तरंजित सी स्वप्निल वेदनाओं का संचार 
आत्मीय सी सम्वेदना ...प्रश्नों की बौछार 
म्रत्यु ....जीत हार व्यर्थ संवेदित प्रहार झुलसकर बिखरी देह 
चौराहे खड़ा था नेह ..उसपर काली लम्बी रात 
सुबह की धुंध ...ओस की बरसात ...और अंत की और बढ़ते कदम 
एक सूरज का आगमन ..चन्दमा का विर्सजन ...यही सृजन है शायद !!
संचरित प्रकाश की उम्मीद में पथिक ..
एक छोर पर समय खड़ा रहा ...दूसरे पर जीवन
और चल पड़े थे हम लिए यक्ष प्रश्न बाँध जीवन डोर से
काश ...उजियारा हो जाता ,
किन्तु जल बरसता ही मिला ..और बादल ढीठ से हटे ही नहीं .- विजयलक्ष्मी 

No comments:

Post a Comment