Sunday, 13 October 2013

कविता सी लगती है ..

जिनसे जीवन मिलता है कविता सी लगती है ,
सूरज का ढलकर निकलना कविता सी लगती है 
तारों की छाँव में आना नंगे पांव दौडकर कविता सी ..
वो पिता की आँख के आंसू जिन्हें पौंछ लेते है आस्तीन के कोने से 
और मुस्कुरा उठते है मुझे सामने पाकर कविता सी ...
भाई का मुरझाया चेहरा बहन की खिलखिलाती हंसी पर पहरे बैठाना
उन्मुक्त महकना खेतों सा बढ़ती है चिंता भी कविता सी ...
और वो एक मुस्कुराहट तुम्हारे चेहरे की ...जब तुम झांकते हो ओट से निकल 
...ये बताते हुए मैं यही हूँ साथ तुम्हारे ....कविता सी लगती है 
माँ का चेहरा मुस्कुराता है सुकून से और ख़ुशी से... कविता सी लगती है .- विजयलक्ष्मी

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