प्रकाश पुंज बन किरण भेजता है
हर कपाट पर आँख धरता सा है
अन्ना भी बदला है अपना फैसला
समय बोलकर शांत सा है दिखता है बस..
साफ़ दिखती है उठती समय की रेख सब..
चर्चा राष्ट्र व्यापी होनी चाहिए राजनीति का नया अध्याय है ..
चाल पर है वही पुरानी ...उठता हर तरफ सवाल है ..
सम्भावनाएं शून्यता की और उन्मुख होने लगी ...
लोकपाल मुँह बाये देखता रह गया वक्त की चाल को
अब कौन सा शीश उठेगा ,जो पढेगा फिर से इस सवाल को ?
अपने ही देश में हम बेगाने हों रहे ...
सरकार हुई गद्दार सीमा लगी है देश की खाने ..
राजनीति की लंका में सभी बावन गज के है ....
सब ने हाथी के दांत ही है लगाये
अब चुप लगाना ही बेहतर है, समझ लो ..
न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगीं...हिन्दुस्तान में ..
श्याम की बांसुरी क्या करे ,
आंगन ही टेढा है लोगो के दिमाग में कोई कितना नाच दिखायेगा
आठ दिन की भूख के बाद ईमानदारी की भूख भी चल बसी शायद ..
कुत्ते की पूँछ बारह साल में भी टेडी ही निकलती है ...
जितने मरे थे रात को सुबह सहर के साथ उठकर भाग गए ..
अब पूछों,,,,,, किसके पास जवाब है ...
भ्रष्टाचार कब खत्म होगा ..
क्या मेरे देश का नवनिर्माण होगा ...
तेरा भी है ,उसका भी हैये देश , सवाल तो करो खुद से भी .
बारिश हों रही है या किस्मत पर रो रहा है भगवान भी ,
या खड़ा भष्टाचार और स्वार्थ हंस रहा है आज सबके हाल पर
स्मित रेख अफ़सोस की कहूँ कुछ ठीक नहीं लगता पर उभर गयी होठो पर क्यूँ ?
सवाल जस का तस है अभी अब क्या होगा कब होगा कैसे होगा ...
जवाब भी उसी तर्ज का है आज तो ....
हमने देखा ...हम देख रहे है ,...हम देखेंगे ....
सम्भावनाये क्या है ..................???- विजयलक्ष्मी
हर कपाट पर आँख धरता सा है
अन्ना भी बदला है अपना फैसला
समय बोलकर शांत सा है दिखता है बस..
साफ़ दिखती है उठती समय की रेख सब..
चर्चा राष्ट्र व्यापी होनी चाहिए राजनीति का नया अध्याय है ..
चाल पर है वही पुरानी ...उठता हर तरफ सवाल है ..
सम्भावनाएं शून्यता की और उन्मुख होने लगी ...
लोकपाल मुँह बाये देखता रह गया वक्त की चाल को
अब कौन सा शीश उठेगा ,जो पढेगा फिर से इस सवाल को ?
अपने ही देश में हम बेगाने हों रहे ...
सरकार हुई गद्दार सीमा लगी है देश की खाने ..
राजनीति की लंका में सभी बावन गज के है ....
सब ने हाथी के दांत ही है लगाये
अब चुप लगाना ही बेहतर है, समझ लो ..
न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगीं...हिन्दुस्तान में ..
श्याम की बांसुरी क्या करे ,
आंगन ही टेढा है लोगो के दिमाग में कोई कितना नाच दिखायेगा
आठ दिन की भूख के बाद ईमानदारी की भूख भी चल बसी शायद ..
कुत्ते की पूँछ बारह साल में भी टेडी ही निकलती है ...
जितने मरे थे रात को सुबह सहर के साथ उठकर भाग गए ..
अब पूछों,,,,,, किसके पास जवाब है ...
भ्रष्टाचार कब खत्म होगा ..
क्या मेरे देश का नवनिर्माण होगा ...
तेरा भी है ,उसका भी हैये देश , सवाल तो करो खुद से भी .
बारिश हों रही है या किस्मत पर रो रहा है भगवान भी ,
या खड़ा भष्टाचार और स्वार्थ हंस रहा है आज सबके हाल पर
स्मित रेख अफ़सोस की कहूँ कुछ ठीक नहीं लगता पर उभर गयी होठो पर क्यूँ ?
सवाल जस का तस है अभी अब क्या होगा कब होगा कैसे होगा ...
जवाब भी उसी तर्ज का है आज तो ....
हमने देखा ...हम देख रहे है ,...हम देखेंगे ....
सम्भावनाये क्या है ..................???- विजयलक्ष्मी
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