काश हम भी आजादी के सिपाही बन जाते ,
हिंदू मुसलमां से पहले इंसान बन जाते .
ये किस्से जो लहू से लिखे जा है आज तक ,
इंसानी मुहब्बत के जज्बों से लिखे जाते .
न रोती इंसानियत खड़ी चौराहों पे इस कदर ,
न लाशों को किसी की काँधे ढो रोते हुए जाते .
गीत वतन में होते अमन ओ चैन के मेरे ,
खुशियों को हम भी आपस में बाँट पाते .
जय राम जी की कह ,वन्दे मातरम दिलों में ,
गणपति बप्पा के साथ ,ईद मुबारक कह जाते .
-- विजयलक्ष्मी
-- विजयलक्ष्मी
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