मेरे दर्द की छोड़ कुछ अपनी सुना
,सुना तुमने भी किसी को रुसवा किया मेरी तरह .
भरकर बैठे रहे जज्बात दिल मैं ही ,
हिम्मत न कर सके बताने की उन्हें मेरी तरह.
इन्तजार तो गेसुओं की महक का ,
लबों से मुश्किल है इकरार, बिलकुल मेरी तरह .
पत्थर से शजर और अब गुल ..कांटे ,
बरसते हों दिन रात खुद में, बिलकुल मेरी तरह .
दुनिया बसी है एक खुद के भीतर ही ,
बैठकर अक्सर बात करते हों बिलकुल मेरी तरह .
रूठना मनाना बहुत कर चुके हों तुम ,
कहते मस्त हूँ, पर बीमार हों बिलकुल मेरी तरह .
पुराने साथियों का साथ छूटा है अब ,
सोचा,छोड़ दे देखने ख्वाब भी बिलकुल मेरी तरह .
जी लेंगे, न सोच जो करना है कर गुजर ,
रह जायेगा बंधा मर्यादा में ही बिलकुल मेरी तरह .
कहते मस्त हूँ, पर बीमार हों बिलकुल मेरी तरह .
पुराने साथियों का साथ छूटा है अब ,
सोचा,छोड़ दे देखने ख्वाब भी बिलकुल मेरी तरह .
जी लेंगे, न सोच जो करना है कर गुजर ,
रह जायेगा बंधा मर्यादा में ही बिलकुल मेरी तरह .
....विजयलक्ष्मी
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