Saturday, 18 August 2012

बहुत हुआ ...


आईना ,...तुम सच्चे हों या ..
सच बतलाना आज मुझे ..
बहुत हुआ ..

अब मुश्किल हुआ जाता है ..
बिखरना चाहता है दिल ..
बहुत हुआ ..

कैसे कहें, शब्द लौट जाते है..
होठों पर आकर भी सुन ..
बहुत हुआ ..

बादल से बरसते भी है मगर ..
भीगकर भी भीगते नहीं ..
बहुत हुआ ..

बहे जाते है किस जानिब जाने ..
मंजिल है राह मिली नहीं ..
बहुत हुआ ..



वजूद कहाँ है अब लापता हूँ मैं ..
खत का सिलसिला भी नहीं ..
बहुत हुआ ..

चल मर जाते है जी लिए बहुत ..
कोई गिला भी अब नहीं ..
बहुत हुआ ..

क्या नाम लिखने से भला होगा ..
बदल जायेगी किस्मत ..
बहुत हुआ ..

दोस्त कैसे कैसे जमाने में हुए है ..
सिला ए गुफ्तगू भी नहीं ..
बहुत हुआ ..- विजयलक्ष्मी

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