घोल कर पिला देते ..
चटक कर टूटने के आईने के ..
उडती हुई किरचें ..
जब किरकिरी बनी थी ...
दूध मे घोल कर पिला देते ...
शायद हर कष्ट से निजात ...
और आराम ही आराम ...फिर ..
न कोई शक न सुबहा.
बस प्यार ही बचता फिर ..
तकरार सो जाती हमेशा के लिए ..
बुरा लगा क्या ....
मजाक था ...ये एक ...
मगर अंजाम ...???.- विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment