सहर के उगते सूरज के साथ नव जीवन ,
नव आशाओं को संचार ..
नव जीवन के आसार ,रोशन सी कायनात ,
क्षण क्षण जीवन का प्रभात ,,,
किरण पुंज का रोशन श्रृंगार ..
रक्तवर्ण सा साथ ...जीवन का प्रभात ,,,
वक्त का साथ ...फिर तपिश का अहसास ..
जीवन का पथ निरंतर चक्रित सा चक्र ...
कहाँ हुआ प्रतिघात कह तो ..जीवन का प्रभात ,,,
सहर का नमन ..प्रति क्षण प्रति प्रहर ..
दीप सा आगाज जलन कहाँ क्यूँ कर ..
पवित्र दीप रोशन करे जीवन ...जीवन का प्रभात ,,,
कलुषता क्यूँ धारूं ,क्यूँ मन रहे अब क्लांत ..
है कौन अब अवशेष सब सोच बाकी क्या शेष ..
लक्षित पथ क्यूँकर शेष विशेष जीवन का प्रभात ,,,
--विजयलक्ष्मी
--विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment