कलम से..
Tuesday, 28 August 2012
अकेला खुद में ..
हर शब्द सन्नाटे में तारी है जैसे मौत से मिल गया हों ,
चीखने की चाहत चिल्ला चिल्ला कर,शांत है खुद में .
इस मेले में भी अकेलापन वो भी इसकदर बस गया ,
जैसे गुल कोई गुंचा भी हों , एक अकेला भी खुद में .- विजयलक्ष्मी.
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