शब्दों का काफिला निगाह में
नीलामी की गाय ,दर का वफादार कुत्ता ..बैठा है उम्मीद में ..
मेरे कच्चे घर की छत .. उड़ जाती है तूफ़ान में ..
क्या सरकार को इसकी चिंता बाकी है ..
या सरकार बहरी हों चुकी आज और बहने दे ...बाढ़ में जैसे गंगा ने बहा दिया ..
बाँध न बंधेगा ..कितनी बार नापतौल बाकी करेगी सरकार ...
या बिलकुल निकम्मी है पर इतनी उम्मीद नहीं थी ..
क्या कह सकते है घोटालों का परचम लहराया है हर ओर ..
और उस पर मिजाज भी कुछ बदले से है आज सरकार के ..
सुना है कसाब को फांसी हों ही जायेगी ..
चलो मुसलमानों को ...हाँ वही जो चुप बैठे है सजा मिलने से सबक मिलेगा ..
शायद समझ जाये कि जनता ने किस से उम्मीद लगाई ..
चुप्पी ..बता रही है कि समन्दर का उफान देख ...
किसी दरख्त के नीचे पनाह लेली ...और बारिश का आनंद लिया जा रहा है ..
उम्मीद तो नहीं दोस्तों से ऐसी पर बदलता वक्त क्या पता ?
आज ....सूरज भी रंग बदल रहा है ...
न मालूम धरती का क्या हश्र होने वाला है ..
उसपर राम भजन का चिप्पा ...चस्पा दिया हैं .-- विजयलक्ष्मी
या बिलकुल निकम्मी है पर इतनी उम्मीद नहीं थी ..
क्या कह सकते है घोटालों का परचम लहराया है हर ओर ..
और उस पर मिजाज भी कुछ बदले से है आज सरकार के ..
सुना है कसाब को फांसी हों ही जायेगी ..
चलो मुसलमानों को ...हाँ वही जो चुप बैठे है सजा मिलने से सबक मिलेगा ..
शायद समझ जाये कि जनता ने किस से उम्मीद लगाई ..
चुप्पी ..बता रही है कि समन्दर का उफान देख ...
किसी दरख्त के नीचे पनाह लेली ...और बारिश का आनंद लिया जा रहा है ..
उम्मीद तो नहीं दोस्तों से ऐसी पर बदलता वक्त क्या पता ?
आज ....सूरज भी रंग बदल रहा है ...
न मालूम धरती का क्या हश्र होने वाला है ..
उसपर राम भजन का चिप्पा ...चस्पा दिया हैं .-- विजयलक्ष्मी
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