Wednesday, 29 August 2012

फटे हाल किसान ..



अन्नदाता हमारा भगवान ,आज भूखा ही रहा ,
सरकार की नजर भी न पडती है उसपर ..
उसकी औकात ही क्या है 
सत्य मरते भी सत्य ही रहेगा..
आज का वक्त सच में ..
फटे हाल किसान .....
मौसम की मार कर्ज की मार ....गिरवी पड़े खेत ...
उसपर नागरिकों की अनदेखी
कृषक को किसी भी तरह से लाभ से दूर रखती है
उसका साथ तो मानवाधिकार भी नहीं देता ..
वो भी अपने मतलब की बात करता है ...
और सरकार के तो कहने भी क्या ...माशाल्लाह ,
मतलब खत्म तो ...बाहर का रास्ता दिखा दो .....
आज लोगो का जमीर यही है शायद ...
सच तो मर ही रहा है ...
यही आखिरी सत्य होगा शायद ..
हों भी सकता है 
क्या सीरत और सूरत वाह ....बहुत खूब
 -- विजयलक्ष्मी

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