कल्पतरु मेरा नहीं है दरकार नहीं .
राजा स्वर्ग का है इंद्र , भला जताता क्या है..
माटी सा खरा मन ढबके में टूटता है,
उस पे मिट्टी सी माटी का वरक चढ़ाता क्या है..
कल्पवृक्ष माटी का ढेर मेरी जानिब ,
उसकी बेकार सी चमक भला दिखाता क्या है ..
उजलेपन को उजाला ही भाता है ,
कलदार की न सूरत ए दरकार, दिखाता क्या है . - विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment