न सबब पूछ मुझसे यूँ आसूं बहाने का ,
ये सिला कुछ और नहीं, है दिल लगाने का .
जख्म दिल के गहरे हों चले हैं वक्त के साथ,
न समझो इसे बहाना दिल के बहलाने का .
बंद दर के उस ओर भी हैं टूटे दिल के निशाँ ,
बिखरने टूटकर डर नहीं है अब भूल जाने का .
जख्म रिसने का सिलसिला है कयामत तक
असर हुआ है दिल पर यूँ कब्र मैं दफनाने का.
सब्र आयेगा कैसे उसका साया भी न पा सका,
चैन भी गया मिला न वक्त नजर मिलाने का .- विजयलक्ष्मी
ये सिला कुछ और नहीं, है दिल लगाने का .
जख्म दिल के गहरे हों चले हैं वक्त के साथ,
न समझो इसे बहाना दिल के बहलाने का .
बंद दर के उस ओर भी हैं टूटे दिल के निशाँ ,
बिखरने टूटकर डर नहीं है अब भूल जाने का .
जख्म रिसने का सिलसिला है कयामत तक
असर हुआ है दिल पर यूँ कब्र मैं दफनाने का.
सब्र आयेगा कैसे उसका साया भी न पा सका,
चैन भी गया मिला न वक्त नजर मिलाने का .- विजयलक्ष्मी
wah sakhi kya khoob likha hai
ReplyDelete