Friday, 3 August 2012

न सबब पूछ मुझसे ...

न सबब पूछ मुझसे यूँ आसूं बहाने का ,
ये सिला कुछ  और नहीं, है दिल लगाने का .

जख्म दिल के गहरे हों चले हैं वक्त के साथ,
न समझो इसे  बहाना दिल के बहलाने का .

बंद दर के उस ओर भी हैं टूटे दिल के निशाँ ,
बिखरने टूटकर डर नहीं है अब भूल जाने का .

जख्म रिसने का सिलसिला है कयामत तक
असर हुआ है दिल पर यूँ कब्र मैं दफनाने का.

सब्र आयेगा कैसे उसका साया भी न पा सका,
चैन भी गया मिला न वक्त नजर मिलाने का .- विजयलक्ष्मी   

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