Friday, 17 August 2012

अभी बाकी हैं कहीं ..

हर शिकायत से ये तय हों रहा है सुन ,
हम अभी तलक तुझमे बाकी है कहीं .

जिंदगी और मौत दिखावे की दुनिया,
इन्ही के दरमियाँ वजूद बाकी है कहीं .

अबाबील सी आवाजें कुछ कमतर हुयी , 
अहसास मिटे या विश्वास बाकी है कहीं .

उल्टा ही लटकना है, सम्वेदना सुनो ,

एक अहसास आज तलक बाकी है कहीं .

सूरज सो गया ,चाँद खो गया जाने क्यूँ ,
तारों को तो उम्मीद बहुत बाकी है कहीं .

मौसम बदलने लगा ,क्यूँ चमन में गुल ?
महक ,निकहत ए गुल अभी बाकी है कहीं.-- विजयलक्ष्मी

No comments:

Post a Comment