"इक दीप जलाया है इंतजार का !
होगी सहर वतन में एतबार का !!
कीचड़ भरी राहे मेरे ही गाँव की !
होगा कभी मौसम खुशगंवार सा !!
आशा-दीप यूँही बुझता नहीं देखो !
पतझड़ बाद ही मौसम बहार का !!
गुमे दलाल कमिशन की ओट में !
भूखा मरा वो रोटी का हकदार था !!
हमने देखा अँधेरा उसी के घर में !
जो करता दीपकों का व्यापार था !!
क्यूँ नफरत बनी उसी की खातिर !
जिसे बस दुआओं से सरोकार था !!
अजब रीत जिला-बदर था वही !
खुद जो कानून का ही पहरेदार था!!"- विजयलक्ष्मी
होगी सहर वतन में एतबार का !!
कीचड़ भरी राहे मेरे ही गाँव की !
होगा कभी मौसम खुशगंवार सा !!
आशा-दीप यूँही बुझता नहीं देखो !
पतझड़ बाद ही मौसम बहार का !!
गुमे दलाल कमिशन की ओट में !
भूखा मरा वो रोटी का हकदार था !!
हमने देखा अँधेरा उसी के घर में !
जो करता दीपकों का व्यापार था !!
क्यूँ नफरत बनी उसी की खातिर !
जिसे बस दुआओं से सरोकार था !!
अजब रीत जिला-बदर था वही !
खुद जो कानून का ही पहरेदार था!!"- विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment