Wednesday, 12 March 2014

" अजब रीत जिला-बदर था वही "

"इक दीप जलाया है इंतजार का !
होगी सहर वतन में एतबार का !!


कीचड़ भरी राहे मेरे ही गाँव की !
होगा कभी मौसम खुशगंवार सा !!


आशा-दीप यूँही बुझता नहीं देखो !
पतझड़ बाद ही मौसम बहार का !!


गुमे दलाल कमिशन की ओट में !
भूखा मरा वो रोटी का हकदार था !!


हमने देखा अँधेरा उसी के घर में !
जो करता दीपकों का व्यापार था !!


क्यूँ नफरत बनी उसी की खातिर !
जिसे बस दुआओं से सरोकार था !!


अजब रीत जिला-बदर था वही !
खुद जो कानून का ही पहरेदार था!!"- विजयलक्ष्मी

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