Friday 11 October 2013

ए जिंदगी चल वक्त हों चला है ,

ए जिंदगी चल वक्त हों चला है ,
डूबती उतरती है कश्ती नदी में .

बहता है जो बीच धारा सा बनके ,
लहरों का उठाना गिरना नदी में .

बहुत प्यास है समन्दर की देखो,
यादों का झरना मिलता नदी में .

खिलते गुलों सा तसव्वुर देखा ,
कमल भी देखा खिलता नदी में .

बचकर भला कैसे पार हम उतरते,
पतवार छूटी, ख्वाब बहता नदी में .....विजयलक्ष्मी 

3 comments:

  1. नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (13-10-2013) के चर्चामंच - 1397 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    और हमारी तरफ से दशहरा की हार्दिक शुभकामनायें

    How to remove auto "Read more" option from new blog template

    ReplyDelete