ए जिंदगी चल वक्त हों चला है ,
डूबती उतरती है कश्ती नदी में .
बहता है जो बीच धारा सा बनके ,
लहरों का उठाना गिरना नदी में .
बहुत प्यास है समन्दर की देखो,
यादों का झरना मिलता नदी में .
खिलते गुलों सा तसव्वुर देखा ,
कमल भी देखा खिलता नदी में .
बचकर भला कैसे पार हम उतरते,
पतवार छूटी, ख्वाब बहता नदी में .....विजयलक्ष्मी
डूबती उतरती है कश्ती नदी में .
बहता है जो बीच धारा सा बनके ,
लहरों का उठाना गिरना नदी में .
बहुत प्यास है समन्दर की देखो,
यादों का झरना मिलता नदी में .
खिलते गुलों सा तसव्वुर देखा ,
कमल भी देखा खिलता नदी में .
बचकर भला कैसे पार हम उतरते,
पतवार छूटी, ख्वाब बहता नदी में .....विजयलक्ष्मी
नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (13-10-2013) के चर्चामंच - 1397 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteऔर हमारी तरफ से दशहरा की हार्दिक शुभकामनायें
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वहुत सुन्दर !
ReplyDeleteअभी अभी महिषासुर बध (भाग -१ )!