कहो,हद ए जुनूं पर आके खाली लौट जाऊं ,भला कैसे |
वक्त ए सुकून को पाके खत उसके जलाऊ ,भला कैसे ||
बेरुखी उनकी रुलाती है और मैं रूठ जाऊ ,भला कैसे |
जो ख्वाब था हकीकत हुआ वो भूल जाऊ भला कैसे ||
इस दर्द ए दुनिया से रिश्ता ही तोड़ जाऊ ,भला कैसे |
बकाया ही कहाँ हूँ मैं औ तुम्हे भूल जाऊ ,भला कैसे ||
रंग ए वफा नहीं मालूम बेवफाई निभाऊ भला कैसे |
तुम बसे हो आदत की तरह, बदल पाऊ ,भला कैसे ||
रंग देखे हैं बहुत जमाने के यूँही भूल जाऊं,भला कैसे |
मंजिल दूर सफर लम्बा मैं घर लौट जाऊ ,भला कैसे|| -- विजयलक्ष्मी
वक्त ए सुकून को पाके खत उसके जलाऊ ,भला कैसे ||
बेरुखी उनकी रुलाती है और मैं रूठ जाऊ ,भला कैसे |
जो ख्वाब था हकीकत हुआ वो भूल जाऊ भला कैसे ||
इस दर्द ए दुनिया से रिश्ता ही तोड़ जाऊ ,भला कैसे |
बकाया ही कहाँ हूँ मैं औ तुम्हे भूल जाऊ ,भला कैसे ||
रंग ए वफा नहीं मालूम बेवफाई निभाऊ भला कैसे |
तुम बसे हो आदत की तरह, बदल पाऊ ,भला कैसे ||
रंग देखे हैं बहुत जमाने के यूँही भूल जाऊं,भला कैसे |
मंजिल दूर सफर लम्बा मैं घर लौट जाऊ ,भला कैसे|| -- विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment