Friday 18 April 2014

" अजब कशमकश हुयी दिल को ,उड़े भी ठहरे हुए से "

इन्तजार मिला जिन्दा , हमे भी उन्हें भी ,आमद हो 
अजब सी प्यास बहती है,हुए इक दूजे में बरामद वो !!

खता तो हुयी थी मंजर अलग सा था अहसास का
मुझमे इजहार ए दुआ बसी , रहे यूँही सलामत वो !!

हया का घुंघट उतरता नहीं औ दिल बेजा परेशाँ है 
क्षितिज के उस छोर बैठे न जाने कब कयामत हो !!

कुछ शब्द लबों पर आकर ठहरे रहे ,पत्थर हुए से 
कुछ बैठे हैं इन्तजार ए दर ,थोड़ी सही इनायत हो!!

अजब कशमकश हुयी दिल को ,उड़े भी ठहरे हुए से
इक उम्र बीती ,इक बकाया है बस तेरी अदावत को !!

अजब मतवाली हिम्मत है बेघर भी हुए रुसवा भी
कदम ठहरे गर साँस गयी दर दर की हिमाकत को !!

बेआबरू करके निकाला धक्के देदेकर खुदा ने खुद
मोहरा शतरंजी हम,गुल रखे दुनियावी इनायत को !!

मौत आ जाती तो अच्छा था नामुराद रुसवा वो भी
पलपल मरना हंस हंसकर बेवफाई की अदावत को !!-- विजयलक्ष्मी 

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