आज तो आम आदमी हुआ त्रस्त है !
देखो सत्ता हुयी पूरी की पूरी भ्रष्ट है !!
चेतना औ आत्मा ...हो चुकी नष्ट है !
फुर्सत नहीं देखने की ...क्या कष्ट है !!
योजना कागजी.. जमी पर ध्वस्त है !
निज स्वार्थ में ही ये नेता गिरफ़्त है !!
हर कोई अपने में खुद हुआ व्यस्त है!
हालात है बिगड़े हुए, जनता पस्त है !!
पूछना चाहते है हम....कौन मस्त है !
देखिये , यहाँ हर कोई मौकापरस्त है !! -- विजयलक्ष्मी
देखो सत्ता हुयी पूरी की पूरी भ्रष्ट है !!
चेतना औ आत्मा ...हो चुकी नष्ट है !
फुर्सत नहीं देखने की ...क्या कष्ट है !!
योजना कागजी.. जमी पर ध्वस्त है !
निज स्वार्थ में ही ये नेता गिरफ़्त है !!
हर कोई अपने में खुद हुआ व्यस्त है!
हालात है बिगड़े हुए, जनता पस्त है !!
पूछना चाहते है हम....कौन मस्त है !
देखिये , यहाँ हर कोई मौकापरस्त है !! -- विजयलक्ष्मी
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